उडजा कसूम्बा काळा काग
संवारूं थारी पांखड़ली
में तो जोऊं रे जुलमीड़ा थारी वाट
बैरागण वासी जोय रई॥
झुरझुर रोवे नार सांवळी
पिवजी नै दीजै बताय
बिना धणी रै धण है सूनी
सैजां नाईं सुवाय
आवै नईं म्हानै नींदड़ली रे॥
दोड़ कसूम्बा सुणा संदेसो
पिवजी रै आवण रो
कद आवैला कद ल्यावैला
म्हारी पायलड़ी
आवै नईं म्हानै नींदड़ली रे॥
तीज सुहाणी आई रे साजना
रुत आईं फळ होय
बिना सार चम्पै री डाळी
किणबिद ताजी होय
देवै रै ताना साथड़ली रे॥
काग उडाया सुगन मनाया
काज सरयो नईं राज
लाड-लडावणियाँ घर आवो
रस भीजूं सारी रात
थारी मीठी लागै बातड़ली रे
उड़जा कसूम्बा काळा काग
संवारूं थारी पांखड़ली॥