झूठ बोल्यो सांच सूं—
“भाईला, आज जगती मायं
म्हारी धजा फहरावे,
म्हारी लाग बिना,
कोयां रो भी काम
नी हो पावै।”
सांच कह्योरे— “झूठला!
थारी अतरी अकड़ बाद
आज भी पत फिरे है
म्हारा ही ब्यौहार री।
थूं जाणे है क नी?
बडेरा कहग्या क
“सौ सुनार री अर्
एक लुहार री...”