कुणस सासूजी म्हांनै दुलखै जठ्याणी।

आंख्यां सूं ढुळज्या मन का सरवर को पाणी॥

म्हूं भोळी कोयलड़ी गाऊं साजन का गीत।

ईं छोटा मन मैं जनमी था सूं मोटी प्रीत।

म्हारो मन हार्‌यो थांकी मनसा गई जीत।

थां भोळा भंडारी अर म्हूं छूं सीधी श्याणी॥

गाळ्यां सूं धोवै, म्हारा पीहरिया की पोळ।

भाई बीरां पै लपटावै गाळ्यां को झोळ।

खुद का बतावै जामण का दीना रमझोळ।

घर सूं न्हं खाडै म्हारै लेखै कोडी काणी॥

म्हूं भोळी तुळसां परणी बांस का बन मैं।

दन-दन कटौती होवै म्हारा जोबन मैं।

आग सी लगी मन मैं झाळा सी तन मैं।

दुखड़ां मैं डूबी म्हारी रामकहाणी॥

स्रोत
  • पोथी : सरवर, सूरज अर संझ्या ,
  • सिरजक : प्रेमजी ‘प्रेम’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम अकादमी ,
  • संस्करण : Pratham
जुड़्योड़ा विसै