भाव

जिका भीतर है

झाड़ी में तीतर है

बोलै है- कुटिचर, कुटिचर, कुटिचर!

नेता है

टोपी है

मरजादा लोपी है

थारै ज्यूं ‘बेगो’ है

म्हारै ज्यूं ‘गोपी’ है

पैला अै गैला हा

पेट रा झमेला हा,

पूर साव मैला हा

हा फटिचर, फटिचर, फटिचर!

सेठ जिको

मोटो है

दागलियो झोटो है

म्हां, थां रै ईंरो

घाल्योड़ो टोटो है

अपसर सूं ले तूं है

बदळै मैं, दे तू है,

राहू है, कैतू है, शनिचर, शनिचर, शनिचर!

स्रोत
  • पोथी : बानगी ,
  • सिरजक : मोहन आलोक ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम
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