सांझड़ी मिस आय खोल्या

किण हियै रा द्वार?

रतन घूंघटियै लुको नैं

इतौ रातो राग!

दीठ री दडियां रमै कुण

रंग-रंगीलो फाग?

कुण हियै में भर रह्यो

नव-नेह रो आगार!

सांझ रै मिस आय खोल्या

किण हियै रा द्वार?

देख किणरो रूप पंखी

मोद भर मन मांह।

चहक-चहक उड़ै कठीनै

देख इमरत छांह!

कुण लुटावै आपरो

इतरो रतन भंडार!

सांझ-रै मिस आय खोल्या

किण हियै रा द्वार?

रूप किणरो, प्रेम किणरो

भर गयो आणंद?

उड रह्या पंखी मनां रा

गाय नवळा छन्द!

फूल बिखर पिरोय ग्या

किणरै हियै रो हार?

सांझड़ी मिस आय खोल्या

किण हियै रा द्वार?

जागरण सपनौ हुयौ

सपना सजग जागा।

इसा तीखा नैंण किणरा

अचपळा लागा।

कुण अबलखा मांडणां में

राचगी उणिहार।

सांझड़ी मिस आय खोल्या

किण हियै रा द्वार?

क्यूं हियो आकळ इतो

वाकळ इतो अण-माप?

मन मसोसीजै घणों

किण चंग लागी थाप?

तोड़ जग री सांकळा

किण साजियो सिणगार!

सांझ रै मिस आय खोल्या

किण हियै रा द्वार?

स्रोत
  • पोथी : सगळां री पीड़ा-मेघ ,
  • सिरजक : नैनमल जैन ,
  • प्रकाशक : कला प्रकासण, जालोर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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