अेकर
अगमघाट्यां मांय फेरूं
जाय पूग्यो!
सजळ-नद्यां नै तिरतो
दुर्गम—डूंगरां नै उळांघतो
कठण मारगां बगतो
बावनी-उजाड़ रै बीं पार
निसरग्यो
चींत-तणो तीरकबाण
सरणाटबम् भेदतो गयो
बण-बीड़ां रा झाड़-झंखाड़
सून्याड़
सिंघां री दहाड़
हाथ्यां री चिंघाड़
मरुथळ रा भंबूळिया
ताल-सरोबर, नाळा-कीचड़, दळदळ
नाड-नाडिया खाडा-खबचोळा
सगळां रै उपरां कर
नीसरग्यो म्हारो सनकीपण
अन्तहीण, मन रा सींवाड़ां नै
आदहीण, उळझाड़ां नै
खोलणा चावै भरम रा
सजड़-जड़्योड़ा किंवाड़ां नै
पण चौफेर दिगन्त
अतपन्त, सबद सूं बेसी कंई कोनी
अगोचरां नै जोवणो
समझणो’र कथणो
अमूझ कथणा री लियां
अगमघाट्यां मांय
फेरूं जाय पूग्यो!
मरुथळ
हळहळ करतोड़ी झळां
‘तू पी-तू पी’!
हिरणां री एक जोड़ी मर्योड़ी पड़ी है
चकरीबम् भंबूळिया लगावै फेरी
खेंखाट मचांवतोड़ी-आंध्यां रा सप्पीड़
बा’र घाल रोवै
आवाडूळ
अदेही-अगन री धू-धू सिळगतीं चिता
जाणै, स्योजी री तीजोड़ी आंख
दीसै नी, पण लखायीजै
‘तू पी-तू पी’ रा सबद
कुणसै वेद री है ऋचा?
कितरीक समझै, बूझै’र परखै?
अदीठ नै किण भांत कोई जोवै’र कथै?
गूंगळी-भाषा आंगळी हलावै
सबद
नाद रो ने’चळ बींत कोनी
बिन उचरी वाणी री पड़गूंज है
‘तू पी-तू पी’
गुंजार घुळ रैयी है भरवाँ-थोथ मांय
प्राणतत्व, डील छोड़’र
रळ रैयो है आपरै आपै मांय!
बा अदेही-अगन
बै भंबूळिया’र बो आंध्यां री खेंखाट
छन्द/गीत/कविता नै रचणो चावै
बारम्बार समझण-बूझण री चेष्टा
ज्यूं-ज्यूं कथै, त्यूं-त्यूं उकताट बधै
नीतर, कोई जोग सधै!
फेरूं जाय पूग्यो
अेकर
अगमघाट्यां मांय!
सरवरियै री पाळ
ऊभो रैयो केयी ताळ
तिर रैयी सोन-मछल्यां
अेक नैनो-सो विस्तार
तरळायी मांय
चीकणा-डीलां रो निरत
भरतनाट्यम्, कथक, मणिपुरी, कैब्रे
क तिसळवां
कोई लोकनाच
अेक कोई मछुवो
लटकायां आपरी बंसी रो तागो
तागै मांय कांटो
कांटै मांय जूण दीसती मौत
अदीठ...उड़ीकना
पछै
मछली धरत्यां लटपटाय रैयी
मछली री ‘तड़प’
मछियारै री ‘भूख’
दोय, बापड़ा सबद!
अर्थ रैंवतां भी अर्थविहूण
कथना,
मुवां-सबदां री अरथ्यां ढ़ोय रैयी
पण सबद-बिरम!
जिको है अजर-अमर
मरै कोनी
अगमधाट्यां मांय
अेक संगीत गुंजार उठै
सबदां रो आतमो-सुर
आकार घड़ै
जिको-ई निराकार रैय जावै
फेरूं
जाय पूग्यो अगमघाट्यां मांय
मैं!
संगीत
रात-दिन बाजतो रैवै अगमघाट्यां मांय
गुंजारता रैवै सुर
फूल चटकै, काँटा नुकीला बणै, कूंपळां फूटै
पानका लुळकै
सोरम सरसै, सिणगार रचीजै
सोवणापो सिरजीजै!
पछै
घाटी मांय अेक गांव ऊतर्यायो
अजबघट्टा भोळा-स्याणा गांवड़ू
खेत, डांगर ढ़ोर, गिरस्थ्यां
मौज-मस्ती
सुख-दुख, विरह-मिळाप
हंसी-मसखर् यां
मुळक-पुळक, प्रीत-गीत
आंसू-रुदण, उसांस-निसांस
जाणै, के-के...!
सूखा-बिराण मिरड़ा’र बागर
संगीत, रात-दिन बाजतो रैवै
अगमघाट्यां मांय!
मैं ई जाय पूग्यो
अेकर फेरूं
अगमघाट्यां मांय!
अेक शहर
सुर-सबदां रा मिल-कारखानां
मजूर-मालक रा नफा-नुकसाण
बार, रेस्त्रां, होटल क्लब, थिअेटर-सिनेमा
फैसन,
संस्कृतिविहूण-अेक, संस्कृति
छळ, पाखंड, अफंड
मिनख’र मसीनां, बैंक’र बोपार
साहित्य, कळा’र भावना-तकात रो बौपार!
गोदामां—सबदां सूं छळीजगी
सुर— गीतां रा कंठां मांय घुटण लाग्या
तूट’र बिखरतो संगीत
मिनख नै बूझ रैयो
के बूझ्यो’र के ऊथळो मिल्यो
ठा कोनी!
अगमघाट्यां मांय फेरूं जाय पूग्यो मैं!
भाषा, जद सबदरूपी कोईसी आंगळी हलावै
संगीत रा सुर, जद उठणो चावै
मैं समझण री चेष्टा करण लागूं
धुंधळका-रंग, सैंचुरड़ होवण लागै
सैंसूंसैंस उणियारा
जाणै, अमाबस री रात रा तारा!
हरेक तारै रो नांव-ठिकाणो मैं नी जाणूं
मैं, मन री अगमघाट्यां मांय
हेरतो फिरूं बारम्बार
अकथ नै कथण रा साद
कदै-कदै, लाध्यावै अेकाध
बाकी, कुचरता रैवै पुराणी याद
मैं भटकीज’र
पूग जावूं जठै रो जठै!
अगमघाट्यां रै परलै-पार के है?
ग्रह-नखत्रां मांय के है? क्यूं है?
चींत रा नित-नुवां बियाण
सबदां री अटकळ जंतरी
सुरां री तीबर गत
अलख नै लखण सारू
के ठा’।
कितरीबर करी है जातरा
मैं अगमघाट्यां मांय
फेरूं जाय पूग्यो अेकर!