बूर्‌या पड़्या रतन गीतां रा,

रोवणियै सुर नै समझाल्यो।

चूर्‌या पड़्या मोतिया आँसू,

बिखेरेड़ै मन नै रळकाल्यो॥

पो ल्यो मणिया बिसवासां रा,

ओलै धरल्यो भाव भीजता।

टीर्‌यैड़ै कानां सूं सुणल्यो,

बोल उकळता और सीजता॥

लगा डाम बेसरमी नाचै,

चूंगै गूंठो खीझ पुराणी।

चसै कोयलो सो काळो जुग,

बळै मसांणा, बात कुरांणी॥

घावां रै दिवलै में आँसू,

न्हाई-धोई प्रीत संजोवै,

खळकेड़ी खांसी सी रूंझट,

दुख रा ढाबा मळमळ धोवै!

थरप्योड़ो सुगानां रो फळसो,

खुल ज्यावै सूरज रै स्यामी।

धरती धूजै, आभो कांपो,

जद होवै सत री बदनामी॥

बूर्‌या पड़्या रतन गीतां रा,

रोवणियै सुर नै समझाल्यो।

चूर्‌या पड़्या मोतिया आँसू,

बिखरेड़ै मन नै रळकाल्यो॥

स्रोत
  • पोथी : किरत्याँ ,
  • सिरजक : मेघराज मुकुल ,
  • प्रकाशक : अनुपम प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
जुड़्योड़ा विसै