क्यूं खांचौ हो…
धरम नांव री कूड़ी लीकां
क्यूं बिलमावौ
मिनख-मिनख नै
भेद जता नै
क्यूं फैलावौ
आज हलाहल धरम नांव रौ
क्यूंकर ठावौ
न्यारा-न्यारा
कूंतण रा मापीणा कूड़ा
हिंदू-मुस्लिम
ईसाई अर बौद्ध जैन रा
क्यूं भटकावौ
नेनै नेनै टाबरियां नै
गंगा-जमनी संस्कारां रै
पावन पथ सूं।
जदकै
इण धरती रै आंगण
गीत रचीज्या प्रेम-प्रीत रा
परंपरा-अपणायत रैयी
अणगिण पीढ्यां सागै बैठी
गांव-गौरवै
ढाणी-ढाणी
संबंधां रा बांध्यां तांतण।
वै ई तांतण!
जका बांधिया पुरखां अपणा
इतरा काचा व्है क्यूं तूटै?
किण कारण भारत रै भागां
धरम तणी तकदीरां मांडौ।
क्यूं भूलौ थे
आज कबीरै री वाणी नै
जिण री वाणी
सदियां तक गूंजैलां अपणी
इण धरती रै ऊजळ आंगण
क्यूंकर भूलौ
रहीमन धागौ
प्रेम प्रीत रौ!
जदकै उणरा
लोक कंठ में दूहा आछा
जींवत है,
जींवत रैवैला सदियां तांई।
कींकर खोदो
मिनखां बिच्चै खाई-खाडा!
जठै
धरम सूं ऊपर उठनै
ब्रज काळिंदी गोकुल ग्वारन
सुणिया कई सवैया सांप्रत।
वौ रसखान
स्याम रै रंग में
पूरौ रंगियो ऊजळ अंतस!
अर कैयौ कै..
‘आठहुं सिद्धि
नव निध रौ सुख ई
ब्रज की गाय चराई बिसारौ!’
कान्हा कान्हा करतां-करतां
जिकां सनातन रीतां राखी।
वां नै..
मत बांटो रै बीरा!
कूडी़ थोथी परिभासा में।
मत भूलौ कै
हळ्दीघाटी रै रण-आंगण में
कितरा सूर हकीम जिसा नर
हिंदुवै सूरज सागै लड़िया।
कितरा मिटिया देस-धरम हित?
कितरा अजलग सांसां जीवै
उणी पंथ री
उणी रीत री।
अेक’र फेरूं..
याद करो उण पिच्छम वाळै
रूणीचै रै रामदेव नै
जिण नै सगळा
सांचैमन सूं ध्यावै-पूजै
अर सगळा ई
पीरां रै जैकारां सागै
हिळमिळ रैवै
प्रीत वधावै!
कै जा देखो
सिंध धरा में
पीर मोडियो कैय पूजीजै
छत्रां वाळो आल्हो जसधारी
हिंदू अर मुसलमां सगळा
उण राहड़-पन्नड़ रै चरणां
सिरधा सूं ई शीश झुकावै।
कींकर भूलौ
रतजागां में गातौ ढोली
ब्याव बधाणै आतौ ढाढी
अधरातां में झीणै-झीणै
मधरै-मधरै वायरियै में
रचतै मीठै लोक-गीत नै
कींकर बांटो
धरम पंथ री कांकड़ में इण
शहनाई सुरणाई ढोलक
मंजीरा झींझा तबला नै
अै साखी है संबंधां रा
अपणापै रा
मिनखपणै अर विसवासां रा!
मत उळझावौ
धरम नांव री कांकड़ में इण
हंसती खिलती मिनखजात नै
मत बांधौ
भोळै मिनखां नै तणकै खूंटै
मत राखौ
ऊजळ अंतस में ऊंडी खोखा!