धरती बोली सूरज सूं—
1
“थारो यो रोज-रोज रो
बिछोह
म्हारे मन ने
गैरो साळे है।
कायी होगी मूं
लोगां री निजर्यां सूं
रात भर बेशरम होय र
चांदो म्हां पर डोरा डाले है।”
2
“थारे बिना
आखी रात
आँसूड़ा (ओस)
ढाळतां-ढाळतां
म्हूं बेहाल होगी।
पण परभाते
थारा पैला
चुम्बण पर
सांची कहवूं,
म्हूं शरम सूं लाल होगी”।
3
“मनड़े गैरी स्याही छागी
काह्ल जद थां
म्हासूं बिछुड़बा लाग्या
पण आज जदैं
थारी मोहनी किरणां
परभाते म्हारे
दरूजे री
सांकळ खड़खड़ाई
तो मनड़े ‘रा पंछीड़ा
आभै म उड़बा लाग्यां”।
4
“अतरी चमकीली
निजर्यां सूं
मत घूरे सायबा
ऊब जासी।
थूं कितरो दोगलो है
म्ह जाणूं,
संझ्या बागता ही
चमकती तारिकावां
री बाहां म डूब जासी”।
5
“परभाते,
सीळी अर् रूपाळी
निजर्या सूं
मन्ने बहलार्या हो।
दोपेरां,
म्हूं प्यासी नै
रीस खाय र जळार्या हो
संझ्या
प्रीत म पतियायोड़ा
वादा री झूल म झुलार्या हो
रात्यूं
डेरा दूजां रे घरां डाल
म्हारा दनड़ा
दो’रा घुळार्या हो।