अवनी रै मन हाल उदासी

कळप काळजै

अवळू री आतप सूं

अकुळावै हा अंग-अंग

अन्तस में ही दाझ

विगत री यादां ताजी

बिछड़ै बाबळ सूरज सूं

मिळवा री ही हाल हियै में

लवणां लागी।

देख देख बस उणरै सांमी

हर पळ रहती आंख्यां जागी

बिसर नहीं पाती ही उणनै

चक्कर बस खावै ही उणरा

आसै-पासै

भाग रैयी ही

भटक रैयी ही

बंधी अदीठी सांकळ सूं

वा लटक रैयी ही।

पण कोई तो होवेै मापौ

किणी कांम रो

छेह कदै आवै आवै।

भूल पड़ै

थाकै अर आहळै,

हार कदै खावै खावै।

जुग बीता अर समै गुजरियो

भम-भम भमतां

कितरौ-कितरौ

काळ गुजरियौ

कीं काया रा

कस-बळ कसक्या

कीं आसंग थाकी हिवड़ै री,

काई हुई

कंटाळ गई तौ

भटक-भटक जद

हार गई तौ

थाक गई

नित फिर-फिर

घिर-घिर।

अणमापै इण श्रम री कूटी

चूर हुई तद,

मिट गी अब

आसा मिळवा री

बाबळ रै आंगण खिळवा री।

भूली तौ

कीं मिळी सांयती,

मिटी पीड़

अर आहां बिसरी

आतप अवळू री कीं ठण्डी

हुई,

काळजै कळ भी आयौ,

हियौ हुड़क सूं निसर्‌यो

सांयत हुई

उसांसां सुख री निसरी।

धीजौ मन पायौ

चेती अर

संभळी थोड़ी

काया कांनी ध्यांन लगायौ

हाल

देख बेहाल आपरा

सोच्यो

धीजो धार चित्त में,

जीवण रो सरंजाम जुटायौ।

धीमै-धीमै

मन बिळमायौ।

नेठ

पवन सूं नेह लगायौ,

मिळ दोन्यूं

गेह बसायौ।

तद

जांणै गाज पड़ी,

ज्वाळामुख फाट्यौ,

टूट्यो गगन

पड़्यो भू ऊपर,

धरती री कांपी सा काया।

छूट्यो हियौ

टूट ग्या बन्धण,

सनेव सूत छिटक्या पळ मांही।

तोड़ पलक में नेह

धरा सूं

गयो सहोदर।

वो!

जो,

जुड़ियो-जुड़ियो हो

अर

जुड़वां ही जळम्यो हो।

जुड़ ने साथ रैयौ हो,

दु:ख, आपत, वीखै री वेळा,

पळ-पळ, छिण-छिण

जिण साथ दियो हो।

वो जुड़वां भाई धरती रो,

नाठ्यो

छोड़ अेकली उणनै।

तोड़ नेह री कोर

बावळो,

जाय पड़्यो

अळघो अळघो।

अब तो

छेलो संगती बीरौ

देय-दगो

वो भी जा नाठ्यौ।

रह्यो कोई साथ,

जूण रो जूओ भारी,

ढोणौ,

सांपड़तै

अेक अेकली!

वीखो,

दु:ख,

चिन्ता!

खाय गई

धरती रै मन नें।

सोच फिकर रो सूळो लागौ,

तन नै खावै।

काया रा कंकाळ

टूट ने बिखर्‌या जावै।

भाग गया

पिरथी रा गोडा।

पड़्या पेट में खाडा

जांणै ऊण्डा-ऊण्डा,

दरक-दरक

काया में पड़ गी अणत दरारां।

उथळ-पुथळ सी मची,

मच्यो

कोहरांम भयंकर,

ऊंचा-ऊंचा

गूमड़ ज्यूं उभर्‌या काया में

बिगड़-बिगड़

धरती रो हो ग्यो

रूप भयंकर।

अनुज-सहोदर सूं

यूं पण बिछड़ै कीकर?

सोरै सांस

आप, अपणां नै

छोडै कीकर?

कीकर छोड

म्हनैं जावैला

म्हारो भाई?

हाय..! हाय..!!

धरती चिल्लाई।

चीखी, कूकी भोम,

भोम हद, अथाग अकुळाई।

राजी करवा

दौड़ी उणरै ला’र

मना पाछौ लावण नै,

छोड़ गेह नै।

व्योम

अणत, अणथाग

कठै तक ला’रो करती?

उण वीरै रै ला’र

दौड़ती कितरी धरती?

होवण हार हुवौ

होवै है,

होतो रैसी।

सोच्यो-समझ्यो, समझ,

जा’र पकड़ियो पल्लो,

प्रेमी पवन रोक,

थांम बांहों में घाली।

नेह दियौ,

धीजौ बंधायौ

विद-विद भांत

घणों समझायौ।

औ!

औ, तौ,

थांरौ अपणौं है

अपणों बण नै नित रैवैला।

निस-दिन,

पळ-पळ

छिण-छिण,

मन में तौ,

थांरो ध्यान धरैला।

आघौ,

थ्हां सूं घणों

कदै जा सकैला।

ममता रा बन्धण,

काट्यां सूं भी नहीं कटैला।

सनेव सूत में

चन्दर थांरै बन्ध रैवैला,

थांरौ अनुज,

नित्त थां पर

सनेव सलिल

शीतल किरणों रौ

बरसातौ अनुराग रैवैला।

थांरी संताना,

केह मामा,

उणरौ,

नित सम्मान करैला।

बण नै

ससि, सुभग सोवणों

नीळ गगन में,

विचर-विचर नै,

थां पर,

थां री संताना पर,

सदा

सुधा सम सनेव

सतत बरसावैला।

तौ,

इण सुन्दर, सीतळ, नवकर नै,

‘चन्दा-मामा’

जुग-जुग तक जग कैवैला।

यूं,

दे धीजौ और दिलासौ,

मारुत मतवाळै,

मुस्किल सूं,

रोकी धरती ने।

बाथां में भर,

अंग लगाई,

सेहलाई,

फुसळाई,

नाना विद सूं

उणरो मन बिलमायौ,

घणौं कठण हो,

पण मारुत भी कम कोनी हो।

हियै लगा हवळै

धरती नै,

कियौ इसारो नभ रै कांनी,

अर धरती नै,

बता दियो आंख्यां रो तारो।

दूर गगन में

देख विचरतां

अनुज चन्द्र नै

वसुधा री

सुद-बुद सै पळटी

सेवट

व्ही आस्वस्त मही,

धीरै सूं मुळकी,

आली आंख्यां

नैण झरोखा,

खोल्या,

पळकां रा पट किया उघाड़ा।

नेह नैण सूं

निरख्यो निज रे हित चिन्तक नै,

अर दूजै पळ

उणरै बजर वक्ष पर

भाल टिकायौ।

हियै हुळस,

लिपट हेताळू,

हुई निछावर आप पवन सूं।

देव जोग सूं

उण पळ

बरस्यौ प्रेम पवन रौ,

बरबस

अंग अंग धरती रो सरस्यौ।

नेह नीर सूं

भर ग्या

खाली खाडा,

ऊण्डा उण्डा,

बण्या समन्दर।

गूमड़ जम-जम ठोस हुआ

तौ बण ग्या डूंगर।

धवळो भेख

धारियो वे हिम रौ,

पळ-पळ, पळ-पळ,

पळक्या वे,

रवि किरणां में।

गळ्यो हेम,

तो

बेह गी सरितावां,

धरती पर

कळ-कळ हहराती।

नद-नाळा,

अर

सरवर-सागर,

परबत-पठार,

मैदांण बण गया।

सीतळ पवन,

भाण री ऊष्मा,

मेघ बण्या,

गहरायौ अम्बर।

बरखा बरसी,

अवनी सरसी,

तिरपत हुई,

जुगां री तिरसी।

धन्य भई,

धरती हरखाई।

अबै

अभागण,

बणी सवागण

और सुभागण।

स्रोत
  • पोथी : पिरथी पुत्र ,
  • सिरजक : ओमप्रकाश गर्ग ‘मधुप’ ,
  • प्रकाशक : बाबाजी प्रिन्टर्स ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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