जद आंबा रै अकडोड्या पाकै बापू बिरथा क्यूं लड़िया

भूतां ठौड़ पलीत जगावण अंगरेजा सूं क्यूं अड़िया।

धरती जाया मांणस नै चांदा रौ चाव लगायौ क्यूं

आदू अभ्यागत करसा रौ अंदाता नांव दिरायौ क्यूं

मीलां जाय मजूरां रै गाभां रगत रळायौ क्यूं

जे आई रांमत रमणी ही तौ थोथा सपना क्यूं घड़िया।

जद आंबा रै अकडोड्या पाकै बापू बिरथा क्यूं लड़िया

भूतां ठौड़ पलीत जगावण अंगरेजां सूं क्यूं अड़िया।

झूंपां जीवण वाळां नै महलां रौ काच बतायौ क्यूं

गोलीपौ करती धीवड़ रौ आजादी नांव धरायौ क्यूं

ऊजड़ खड़ती आंधी नै यूं बीच बजारां लायौ क्यूं

कूच नगारां पैल धड़िंगै पग धरतां आखड़िया।

जद आंबा रै अकडोड्या पाकै बापू बिरथा क्यूं लड़िया

भूतां ठौड़ पलीत जगावण अंगरेजां सूं क्यूं अड़िया।

कद कमतरिया आड़ौ लीन्हौ कै राज सूंपजौ सेठां नै

रांमराज रौ सिंघासण रावण रै राकस बेटां नै

सतवंती सीता सीझै अब झाळोझाळ लपेटां में

बीज गमायौ वेल्या थाका खारच खेतर क्यूं खड़िया।

जद आंबा रै अकडोड्या पाकै बापू बिरथा क्यूं लड़िया

भूतां ठौड़ पलीत जगावण अंगरेजां सूं क्यूं अड़िया।

वे हुता लुटेरा परदेसी धरती रा धाड़ैती सिरमोर

मासी जाया भाई वीरा कुण छोटौ कुण मोटौ चोर

साथळ उघाड़ां किण सांम्ही पीड़ चभीकौ बेजा ठौर

घर घर घाटौ घूमर नाचै थें भरम भरोसै क्यूं भिड़िया।

जद आंबा रै अकडोड्या पाकै बापू बिरथा क्यूं लड़िया

भूतां ठौड़ पलीत जगावण अंगरेजां सूं क्यूं अड़िया।

मजदूरां हेलौ सांभळज्यो बोल आखरी कैणौ है

करसां संभ जाज्यो हाकै नै हां नवौ मोरचौ लेणौ है

मरजाद निभावण माथा दो जे अबै जीवतौ रैणौ है

थारै हारियां जुग हारैला अखरै जीत मोरचै जुड़ियां।

जद आंबा रै अकडोड्या पाकै बापू बिरथा क्यूं लड़िया

भूतां ठौड़ पलीत जगावण अंगरेजां सूं क्यूं अड़िया।

स्रोत
  • पोथी : रेवतदान चारण री टाळवी कवितावां ,
  • सिरजक : रेवतदान चारण कल्पित ,
  • संपादक : सोहनदान चारण ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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