झुक-झुक आया बादळ सरवरिया की पाळ।

खुलग्यो, पूरब की आडी सूं खुलग्यो

पुरवाई को जाळ॥

डूंगर ऊपर डूंगरी बीचा मैं झरणा झरता,

आभा लूम्या बादळा घाट्यां की झोळ्यां भरता,

आकासां का ढोल नंगारा धरती पै पग धरता,

मोर उगेरै मांड, पपइया टेरै मेघ मलार॥

ढोलकड़्यां पे थाप पड़ै अर झांझ मंजीरा बागै,

पटवार्‌यां की पोळ पै जद एक मझल झड़ लागै,

गीतां का गेलां पै लीली घोड़ी हाळो भागै,

तेजाजी की तान्यां छूटै अलगोजा गरणार॥

राजो इन्दर बादळां पै धनक सुरंग्यो खांचै,

गांव गर्‌याळै रमझम ठुमक्यां दे-दे छतर्‌यां नाचै,

ओलात्यां सूं टपका आंखर देळ आंगणां बांचै,

धरती राणी करती अम्बर राजा की मनवार॥

स्रोत
  • पोथी : सरवर, सूरज अर संझ्या ,
  • सिरजक : प्रेमजी ‘प्रेम’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम अकादमी ,
  • संस्करण : Pratham
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