बाव-मंडळ रा बिसण।

तू साव सूनो’र रीतो-थोथो

ढ़ोफलो’र पूरो मोथो

थारै क्यां रो गरब-गुमान!

कैवणो म्हारौ मान!

बावळा!

गूंग छोड़!

कद-लग बण्यो रैसी इस्यो लप्पोड़?

छाती तो थारी संभाळ!

सुणी ही म्हारी दकाळ!

म्हारला-ई सबदां’ळा

सैंसूसैंस भिरगु

अणगिणती

लातां री लापसी घाली ही

थारी छाती उपरां मंड्योड़ा

टँगारै टँग्योड़ा

सैंसूसैंस बोल

खोल नाखी थारी पोल!

ज्याँ नै

तू जाणै गरब-गुमान

बो पैली

बणसी म्हारी ओळखाण!

बावमँडळ रो बिसणू हँसण लाग्यो

मैं,

पेसोपेस मांय फंसण लाग्यो

हँसै क्यूं है म्हाटो?

जोवण लाग्यो :

ताराझरणी-हाँसी

देख’र माथो चकरायो

म्हारलो

ग्यान’र विग्यान घबरायो

कितरा तारा…?

तारा-ई तारा...!

भूलग्यो जाण्या-पिछाण्या

सगळा उणियारा!

म्हारली जीभ लपर-लपर भूलगी

ढुळगी ओळखाण तणी बाण

ग्यान नै देवूं कुणसो परवाण!

देख’र बावमँडळ रो तप-तेज

सून्याड रो सांयतरूप

चितबगनो रैयग्यो मैं

सैंसूंसैंस सुरजाँ माँयलो

अेक सुरजी

इस्यो तपतो’र इस्यो दीपतो...

म्हारलो भिरगुवंसी-

किरोध’र ग्यान

थोथो गुमान मैं भूलग्यो

म्हारा बडबोल

बूझण लाग्या : बोल-वोल!

मैं बापड़ो के बोलूं...?

स्रोत
  • पोथी : कूख-पड़यै री पीड़ ,
  • सिरजक : किशोर कल्पनाकान्त ,
  • प्रकाशक : कल्पना लोक प्रकाशन
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