पलक भर रा है भलै तमाम।

फूटरा है थारा चितराम!

चमकता दीसै कण-कण मांझ

मर्‌योड़ी माटी में प्राण।

दब्योडां गिड़ां तळै री मुळक

दूब री चितवन तूझ पिछाण।

अंधारै पख री काळी घटा

झुरै है जिण पीड़ा रै पाण!

पवनियो गावै जोर-विभोर

देख नैं थारा आईठांण।

घणैं दुख में मीठी मुळक

मुळक में पीड़ा थारो नाम।

पलक भर रा है भलै तमाम

फूटरा है थारा चितराम!

हसै तारां रा चम्पा-फूल

झरै इमरत री कर बरसात।

चांनणी बिखरा चारूं कूंट

प्रीत री कड़ियां गावै रात।

धरा भीनै किणरै घण नेह

सुणीजै किणरो मुधरो राग?

अचंचल कुण बरसावै रूप

मनां रै मांय झरै मद-फाग।

ऊळझै आंख्यां रहस उलाळ

हियै नैं मिळै पल विसराम।

पलक भर रा है भलै तमाम

फूटरा है थारा चितराम!

स्रोत
  • पोथी : सगळां री पीड़ा-मेघ ,
  • सिरजक : नैनमल जैन ,
  • प्रकाशक : कला प्रकासण, जालोर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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