बियां तो नारी रै बिना दुनिया री कल्पना व्यर्थ है,

पण अठै म्हारै इण रचनाकर्म रो भी कीं अरथ है !

मान ल्यो, दुनिया में फगत और फगत नर है,

आखै संसार में मादा रो कोई वजूद नीं है !

पुरुषां रै अत्याचारां सूं आघती होयनै स्त्री जाति,

सीता-सी समाय चुकी है धरती मां री कूख में !

कै पछै वासनावां रा गिरज नोंच खाई है उणनै,

अर मिटा दियो है औरत रो नामो-निसाण !

मां-बैन, बेट्यां अर जोड़ायत री तो बात कांई ?

कीट-पतंग, जीव-जिनावरां में मादां नीं बची !

बस, सगळी धरती पर आदम्यां रो वास है,

मान ल्यो, जलम भी तकनीक सूं हो रैयो है !

जगत तकनीक पुरुषां सूं अतटो जा रैयो है,

काळजो धरणी रो भी दर्द सूं फाटतो जा रैयो है !

आखी स्रिस्टी में पुरुषां रो डंको बाज रैयो है,

पण हाय, हिवड़ै में तो बां रै को-काट माच रैयो है !

नारी रै बिना नर जीवण कीड़ां-सो कुळबुळावै है,

मवाद भरियै फोड़ै-सो, अणकथी पीड़ जुळबुळावै है !

अर विलाप कर रैयी है उणरी अंतर्रात्मा,

चेतै आवण लाग रैया औरत माथै किया जुल्म !

मां री ममता, बैन रो दुलार अर पत्नी री प्रीत,

प्रेम रा किस्सा, जीवण रो आनंद अर गीत-संगीत !

बियां तो पुरुसां रै पुरुसारथ में घणो जोर है,

पण बो चावै है फेरूं स्त्री, काबिले-गौर है !

स्त्रीहीण संसार नरक सूं बदतर हो चुक्यो है,

मरदानगी रो घमंड भी अब हवा हो चुक्यो है !

मायड़ खातर काळजै पीड़ बधती जा रैयी है,

बैन री ओळ्यूं में आंख्यां बरसती जा रैयी है !

पत्नी खातर आकळ-बाकळ मन री उडार,

अंतहीण बिरखा जैड़ी बरसती जा रैयी है !

पण पुरुस तो खुद मिटा चुक्यो हो नारी,

तो अब कठै लाधै; मां-बैन, बेटी अर वाल्ही ?

स्रोत
  • पोथी : ऊरमा रा अैनांण ,
  • सिरजक : कपिलदेव आर्य ,
  • संपादक : हरीश बी. शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै