नफरत रा बीज नै
नीं चाहिजै खाद-पाणी
काचै हियै री माटी मांय
बिना सार-संभाळ
उग जाया करै है
नफरत रो अळूझाड़।
नीं कटै-मोटी कुल्हाड़िया सूं
घणौ चीकणौ होवै है
नफरत रो काठ
इण चिकणास रै पांण ई
तो यो लोगां रै
चेतै चढै।
चेतै ईज नीं चढै
नफरत री चिकणास
घणी सोवणी होवै है
लोग उणनै सुरमै ज्यूं
सार लेवै नैणां मांय
तो साम्ही ऊभौ
सैण भी दुसमण लखावै।
अर उण बापड़े रा
जुगां तांई कियोड़ा उपकार
पळ में बिसर जावै
नैणां मांय राता-राता
डोरा तण जावै
इण तरै हेत रे खेत में
बाड़ डाक
रोझड़ा घुस आवै
कर नाखै जुगां रै
सम्बन्धां री साख नै
धूळ धाणी।
सपना रा सितोलिया
दंभ री दड़ी सूं
खण्ड-खण्ड व्है जावै
लोग नीं जाणै
सबसूं अबखौ काम है
सपना रै मळबै सूं
अेक साबत सपनो
तलाश लेवणौ।
इण दिनां लोग
सपना देखणा ई
भूल गया है फूलां रा
हरियाली रा
बगीचां रा, झरणां रा
इण अणूतै वगत मांय
जका सपना आपां नै
बिरासत में मिल्या है
वां नै ई अंवेर राखां
तो घणो उपकार
व्हैला मिनखपणै रै
भविष्य रै खाते मांय।
पण नफरत रै कान नीं व्है
वा नीं सुण सकै
सपना रो संगीत
नफरत रै आंख नीं व्है
बा नीं देख सकै
सपनां रो मुळकतो चै’रो
नफरत रै दिमाग नीं व्है
वा नीं बणा सकै
सपनां रो नक्सौ
नफरत रै हियो तो
व्हे वै ईज नीं
वा नीं पाळ सकै
किणी सपने रै टाबर नै
मां री दखाल।
नफरत रै फगत
हाथ व्है
हाथां में हथियार व्है
जिण मांय लुक्योड़ी व्हेवै हिंसा
हिंसा रो पडूत्तर
कदेई अहिंसा व्हेतौ व्हैला
पण यूं लखावै के
लोग भूल गया है
सगळा पुराण पाठ।
कितरौ चोखौ व्है
जे नफरत री तरजणी में
उग आवै आंख्यां
अर अंगूठै में कान
हथाळी मांय धड़कण ढूकै हियौ
अर पूंचै मांय आ बैठे दिमाग
तो आ ईज नफरत
हर नरक नै सुरग में बदल सकै।