इरणै री लकड़्यां जोड़’र

गारै सूं चिणियोड़ो गोळ झूंपो

कन्नै ऊभो नवो मकान।

म्हैं देख्यो धोतियो पेर्यां बूढो माइत

अर पढियोड़ो बेटो जवान।

बठै सूं बावड़ती बखत

जीव गळगळो हुयो

जाणै

अबकै आवूंला जद

अे बडेरा

आंगणै मांय

मिलैला कै नीं!

स्रोत
  • पोथी : अंतस दीठ ,
  • सिरजक : रचना शेखावत ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन,जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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