'राजस्थानी भासा म्हारै रगत रळ्योड़ी है।'
आ ओळी जे आपनै कविता री ओळी नीं लागै
तो कोई बात कोनी....
कविता सूं पैली जरूरी हुवै भासा री संभाळ
भासा री हेमाणी लियां ऊभो हूं म्हैं....
आप रै मूंढै फूल झड़िया—
'मरगी राजस्थानी भासा,
बाळ दी राज उण नै बरसां पैली
कोनी राज री मानता।'
कोई बात कोनी....
जद मरगी म्हारी भासा
फूल चुगण नै दूजो कुण आसी..!
ओ पक्को है कै आप आपरी जीवती भासा सूं
बित्ता कोनी जुड़्या
जित्ता म्हे म्हारी भासा सूं!
जे आ बात नीं हुवती साच
तो इसी अबखी घड़ी
फूल झाड़ण सूं बचता आप।
आ ओळी जे आपनै कविता री ओळी नीं लागै
तो कोई बात कोनी....
राजस्थानी भासा राजस्थानियां रै रगत रळ्योड़ी है।