अंधड़ रा झाटका सूं

रूंख नीचे दब’र

मरग्यो एक मिनख

अर् एक कागलो

फैल्या समचार

जुड्यो संसार।

कागला री देह रे

ओळ-दोळ हा

कागला ही कागला

भरग्या व्यांरा

कुटम्बयां सूं

छाजा, गोखड़ा

अर् डागळा।

काँव-काँव री

कानाफूस्यां सूं

मना रह्या हा मातम

कर रह्या हा विलाप

दे रह्या हा

प्रक्रति ने स्राप

उठी...

पड़ी ही मिनख री लाश

कोई भी नी हो जीं रे पास

छितराया लोग

छेंटी सूं झांकर्‌या हा

दूरां सूं कोरी

बातां फांक रह्या हा

नजीक हा

कोरा दो पुलिस वाळा,

जो कागला री

जात पर थूंक रह्या हा

अर् मिनख री

लाश आडी पूठ फेर’र

बीड्यां फूंक रह्या हा...।

स्रोत
  • पोथी : अणकही ,
  • सिरजक : कैलाश मण्डेला ,
  • प्रकाशक : यतीन्द्र साहित्य सदन (भीलवाड़ा) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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