काजळ सी घुट सिंझ्या नैणां-कोर समाई।

रंगा में घुळ रात रंगीली बण-ठण आई॥

दीया जगै, उजाळो हंसमुख, गीत सुणावै।

बुझता बोल उदास, अबोल्या शब्द बणावै॥

पलकां री कोरां में, रंग-रसियै रो आलम।

सैनां में समझावै, नेवरियां री छम-छम॥

तिरस्या होठ इमरती सा, मधुरस छळकावै।

मुखड़ो निर्मळ गौर सरीखो भक्ति जगावै॥

देही दर्पण जिसी सजीली, मन मुळकावै।

नाड़ लुळै, कड़ लचकै, गजब-गजब हो ज्यावै!!

खुल-खुल बेणी री लट कांधां पर लहरावै।

जाणै समदर-लहरां उमड़ कुळांचां खावै॥

स्रोत
  • पोथी : किरत्याँ ,
  • सिरजक : मेघराज मुकुल ,
  • प्रकाशक : अनुपम प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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