धंधा बिन कीकर धकै।

मंदौ मिगसर मास।

टंक टाळण टुकड़ा नहीं,

पसुआं रै नहीं घास॥

परण्या रौ पांणी मरै,

धण जद खोदै धूड़।

रंगत उडगी रेत सूं,

फबती लागै फूड़॥

माथै तगारी मेलियां,

थांभ पावड़ौ हाथ।

क्रूर काळ रै कारणै,

बाळक लीनौ बाथ॥

पसु अर मांणस पाळबा,

लेवण सार संभाळ।

धरमादौ दांनी करै,

काढण सारू काळ॥

स्रोत
  • पोथी : रेवतदान चारण री टाळवी कवितावां ,
  • सिरजक : रेवतदान चारण कल्पित ,
  • संपादक : सोहनदान चारण ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
जुड़्योड़ा विसै