(किशोरी अमोणकर नैं सुणती वेळा)
गैरावती रात
भरै साख—
देही रै बिछोह री।
आभौ सोधै आंख
तिरता बादळ
बिचाळै
अेक दिहाड़ै बिखरै
सुरां री सौरम—
म्हारो प्रणाम
बांके बिहारी।