उड़ती कोयलड़ी तूं प्रीत रो परवानो लेज्या अे

उड़ती कोयलड़ी..।

उड़ती-उड़ती जाय नै करांची बासो लीजे अे

मायी मांरा यूब नैं अेक बात कीजे अे

उड़ती कोयलड़ी..।

रोज संवारै झगड़ मती तूं समझ पराई पीर में

सिर रै मोलां मंहगी रहसी के करसी कशमीर में

सांची कह दीजे

सेंतालिस रै बांट री अेक याद दे दीजे

उड़ती कोयलड़ी..।

उड़ती उड़ती जाय ने

चीन री चौपालां पर बिसराम तो तूं लीज्ये अे

चाऊ नैं चाचाजी रो फ़रमान दे दीजे अे

उड़ती कोयलड़ी..।

धरती री छत रूंध मती, क्यूं कुबद करावै तिब्बत में

पीळा रंग रा मानवी मत, भांडै इज्जत नैं

सांची कह दीजे

पञ्चसील रै सील री तूं याद दे दीजे

उड़ती कोयलड़ी

उड़ी उड़ती जाय नै

अमरिका रा महलां मांहि अेक रात रीजे अे

मोटा पेटां रा सेठां नै सांची कीजे

उड़ती कोयलड़ी

बिन पाणी तिसिया लोगा नै, मत बांटो बम गोळा रे

दो सिंघा नै छोड अखाड़ै देखो मती मखोला रे

सांची कह दीजे

सोना सूं मत आंक मिनख नै याद दे दीजे

उड़ती कोयलड़ी

उड़ती-उड़ती जाय नै

रूस रा रामतिया नै तूं रामा-सामा दीजे अे

कुचमाद्‌यां री कोथळी नै साँची कीजे अे

उड़ती कोयलड़ी..।

लाल रंग रा लाडला मत लाल करावै धरती नै

मत ओढ़ा चाँदी री चादर घावां सड़ती नै

सांची कह दीजे

जाय'र रे जुलमां री थोड़ी याद दे दीजे

उड़ती कोयलड़ी..।

स्रोत
  • पोथी : आ जमीन आपणी ,
  • सिरजक : कल्याणसिंह राजावत ,
  • प्रकाशक : दीवट-कलकत्ता ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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