अबखा अर अबोट सवालां में

अणजाणै हाथ घालणौ

टाबर री आदत व्है—

आगूंच वौ अंदाजै कोनी

अबखाई रो अंत

अर थाग लेवण

उतरतौ जावै अँधारी बावड़ियां

री पेड़ियां।

टाबर रा वां सफीट सवालां रौ

वौ कांई पडूतर दैवै

जिका आभा-चूक

हलक सूं बारै आय ऊभ जावै सांमी

अर हालात नै अरथावण सारू

आड़ौ करै—

जीसा!

आपां क्यूं जोवां कोई रै सांमी

क्यूं चाइजै आपांनै कोई री मैरबाणी

क्यूं ऊभणो पड़ै राज-मारग रै अड़ै-छेड़ै

क्यूं बोलां अंणूती जै-जैकार

अर क्यूं अबोला बैठणौ पड़ै

आपांनै मरजी परबारै?

कैड़ी अणचींती दुविधा है

अेक वळ टाबर री अलेखूं भौली ईछावां

स्यांणी संकावां।

अलेखूं कंवळा सपना

अर बापरती काची नींद,

अर दूजी कांनी

कुजबरी परबसता री पीड़—

उणरी आंख्यां सांमी घूमै

टाबर री इंछावां

अर सवालां सूं जूंझै उणरौ मन

सेवट धूजता पग

चाल पड़ै मत्तै उण गेलै

जिकौ अेक अंतहीण जंगळ में

गम जावै

फगत कानां में गूंजती रैवै

टाबर री धूजती आवाज—

''थे यूं अणमणा कठीनै जावौ जीसा।

दोफारां आपांनै सैर जावणौ है

म्हनै आजादी री परेड में हिस्सौ लेवणौ है

थे यूं अबोला कठीनै जावौ जीसा?''

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : नंद भारद्वाज ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : पहला संस्करण
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