लिख तो द्यूं

फूठरापो गांव रो

पण जद तांई

साम्हीं ऊभी है

वीं री पीड़

कियां लिखूं दूजी बातां?

साम्हीं दीसै—

अेक पाणी री टंकी

फूट्योड़ी अर सूक्योड़ी

कनै आंगणबाड़ी केन्द्र

जठै च्यार महीनां सूं

ताळो है।

स्कूल जावता टाबरियां रै

हाथां में कचोळो है

अखूरड़ी रो कूटळोट

अळूझ जावै पगां मांय

नित नवा चीलड़ा

बतावै गांव रो विकास।

पोसाहार री लापसी दांतां में

चिप्योड़ी लियां टाबर

भाजै पेट पकड़ खेतां में

पण कागला होया सैंठा,

गायां गोधा इज मोटा।

गुवाड़ में दसेक बार रोप्योड़ो पीपळ

काल फेरूं उपाड़ीजग्यो

टाबर पुड़िया खातर बेचै मोरियै री पांखां,

बोरिया, मोठ, बाजरी, किताबां

अर सरकारी मकानां सूं काढ्योड़ो लोहो

सगळो लिख्यां पछै

लिखूंली फूठरापो गांव रो।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : मोहन सोनी ‘चक्र’ ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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