हां अठै बैंवती ही

बा नदी

जिकी महाभारत में ही

का रामायण मांय ही

द्रौपदी जैड़ी

सीता जैड़ी

नीं ठाह कित्ता-कित्ता

मांय रा मांय धमीड़ा खावती

उकळती-उफणती

आपरै हुवण रै साच नैं

साम्हीं राखण सारू

सुखगी।

स्रोत
  • पोथी : मन रो सरणाटो ,
  • सिरजक : इरशाद अज़ीज़ ,
  • प्रकाशक : गायत्री प्रकाशन, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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