कुण जाणे

छाने सी

कद जावे

सूरज री किरण

म्हारा आंगण

ईंज भरम

रोज कुंडी जुड़बो

भूल जाऊं

संझ्यां बाजतां ही

हटा देऊं छान पर सूं

दो चार कवेलू

सायद जावे

चांदणी रो नामेक हिस्सो

म्हारी बाथ

आंख्यां खोल’र

टूट्योड़ी खाट पर सोऊं

कोई परी ही जावे

ले जाबा ने सुपणा रा संसार

हर खटका पर चमकूं

कानां रा परदा उगड्या राखूं

सायद कोई जावे?

बॉट री

बेंडी, बोदी पण आणंदी

आसा मांय जीवूं

कद की हो जावे,

कुण जाणे...?

स्रोत
  • पोथी : अणकही ,
  • सिरजक : कैलाश मण्डेला ,
  • प्रकाशक : यतीन्द्र साहित्य सदन (भीलवाड़ा) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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