काळ : एक (1)

आभै ऊपर भमै गिरजड़ा चीलां उडती जाय
पग-पग ऊपर ल्हास मिनख री कुत्ता माटी खाय
लूट डकैती खून चोरियां लाय लगी तौ झाळौझाळ
भूख भचीड़ा फिरै खावती नाचै झूमै सौ सौ ताळ
सुगन चिड़ी सूरज नै पूछ्यौ गिरजां नै पूछ्यौ कंकाळ
धोरां नै पूछै रूंखड़ला ल्हासां नै अगनी री झाळ
क्यूं मौत री मरजी माथै जीवण री पड़गी हड़ताळ
हिरणी बोली रया करै कंई रखवाळां रौ पड़ग्यौ काळ।

जेठ असाढां आंधी बाजै खीरां तपियौ तावड़ियौ
बळती लुआं हियै रमाई रैण रेत रौ रावड़ियौ
पग उरबांणा बळी चांमड़ी बळ-बळ हुयग्यौ छाळौ
इण आस में सांसा अटक्या आवैला बरसाळौ
आंखड़ियां पथराई बंधगी पांणी आडी पाळ
सुगन चिड़ी सूरज नै पूछ्यौ गिरजां नै पूछ्यौ कंकाळ
धौरां नै पूछै रूंखड़ला ल्हासां नै अगनी री झाळ
क्यूं मौत री मरजी माथै जीवण री पड़गी हड़ताळ
हिरणी बोली रया करै कंई रखवाळां रौ पड़ग्यौ काळ।

सदा सुहांणौ लूंबै सांवण दिन आवै अलबेला
मिनख ममोल्या बाड़ बेलड़ी करै मनां रा मेळा

प्रीत बावळी हुय नै धरती आपा में नीं मावै
पण बिरखा बैरण ऐड़ी रूठी पीड़ कही नीं जावै
सपनां में हरियै सांवण रा आवै है जंजाळ
सुगन चिड़ी सूरज नै पूछ्यौ गिरजां नै पूछ्यौ कंकाळ
धोरां नै पूछै रूंखड़ला ल्हासां नै अगनी री झाळ
क्यूं मौत री मरजी माथै जीवण री पड़गी हड़ताल
हिरणी बोली रया करै कंई रखवाळां रौ पड़ग्यौ काळ।

धरती नै बैराग सूझियौ घर-घर जड़ग्या ताळा
काळ झूमतौ रमै आंगणै भूत बण्या रखवाळा
मिनख मारणौ खोस खावणौ चोरी हंदा रहग्या कांम
रोटी मोटौ तीरथ हुयग्यौ गंगा जमुना तीनूं धांम
काळ बरस में भूखा धाया हुयग्या एकण ढाळ
सुगन चिड़ी सूरज नै पूछ्यौ गिरजां नै पूछयौ कंकाळ
धोरां नै पूछै रूंखड़ला ल्हासां नै अगनी री झाळ
क्यूं मौत री मरजी माथै जीवण री पड़गी हड़ताळ
हिरणी बोली रया करै कंई रखवाळा रौ पड़ग्यौ काळ।

इतरा दिन तौ चांद लागतौ चन्द्रमुखी रा मुखड़ा ज्यूं
आज भूख रै कारण फीकौ लागै रोटी टुकड़ा ज्यूं
भूखी बिलखी आंखड़ियां में सुरमौ कदै न छाजै
नैण कंवळ री उपमा देतां हँसी फूल री लाजै
देख गिगन रौ आधौ चंदौ मंगता हाथ पसारै
हिम्मत कर नै दौड़न लागी भूख मौत रै लारै
धरती ऊपर धरणौ दीनौ आधेटै में थमती चाल
सुगन चिड़ी सूरज नै पूछ्यौ गिरजां नै पूछ्यौ कंकाळ
धोरां नै पूछै रूंखड़ला ल्हासां नै अगनी री झाळ
क्यूं मौत री मरजी माथै जीवण री पड़गी हड़ताळ
हिरणी बोली रया करै कंई रखवाळां रौ पड़ग्यौ काळ।

घर छूटा घरबार छूटग्या आस छूटगी जीवण री
कायौ हुय नै जैर घोळियौ हिम्मत कीनी पीवण री
मिनखा तन मिटती बेळा जीत जैर में दीसी
फांसी चढतां फंदौ बोल्यौ मत गिण मौत इत्ती सी
कूदण लागौ मिनख कुवा में बोल उठी परछाई
ऊंडौ खाडौ भरणी चावै पेट भरै नीं कांई
भंवळ खाय नै पड़गी काया आंख्यां में आयौ जंजाळ
सुगन चिड़ी सूरज नै पूछ्यौ गिरजां नै पूछ्यौ कंकाळ
धोरां नै पूछै रूंखड़ला ल्हासां नै अगनी री झाळ
क्यूं मौत री मरजी माथै जीवण री पड़गी हड़ताळ
हिरणी बोली रया करै कंई रखवाळां रौ पड़ग्यौ काळ।

पांणी पी-पी जापौ काढ्यौ हांचळ सूखी दूधां धार
टाबर रोयौ भूखां मरतौ मन बिलमावण लागी नार
बेटौ मां नै दोसी जांणै चीखां कर कर रोवै
खाली बोबौ चूंघै कद तक सबर कठा लग होवै
रीसां बळतौ किरड़ खायगौ गीगै रूप कियौ विकराळ
माँ हालरियौ गाती रैगी होठ लोही सूं निरख्या लाल
ममता बोली सोच करै क्यूं खून ब्रथा नीं जावैला
होठां चस्कौ भूंडौ लागौ रुळौ राज गिट जावैला
खून दूध सूं मीठौ लागै हँसतौ हँसतौ पीग्यौ बाळ

सुगन चिड़ी सूरज नै पूछ्यौ गिरजां नै पूछ्यौ कंकाळ
धोरां नै पूछै रूंखड़ला ल्हासां नै अगनी री झाळ
क्यूं मौत री मरजी माथै जीवण री पड़गी हड़ताळ
हिरणी बोली रया करै कंई रखवाळां रौ पड़ग्यौ काळ।

कद सूं देखै काळ धरा रौ आभौ इतरौ आगौ
पण अणचेतां नै वगत कठै के देखै काळ अभागौ
उगतौ ढळतौ सूरज देखै मांणस तड़फा तोड़ै
प्रीत तूटती देखै चन्दा छैल कांमणी छोड़ै
हिचकी लेवै मरतौ टाबर तूटै नभ में तारौ
बेचै रमणी लाज चांदणौ कम पड़ग्यौ चंदा रौ
हेमाळै रौ हिवड़ौ कळपै समदर रोयौ आंसू ढाळ
सुगन चिड़ी सूरज नै पूछ्यौ गिरजां नै पूछ्यौ कंकाळ
धोरां नै पूछै रूंखड़ला ल्हासां नै अगनी री झाळ
क्यूं मौत री मरजी माथै जीवण री पड़गी हड़ताळ
हिरणी बोली रया करै कंई रखवाळां रौ पड़ग्यौ काळ।

2 काळ : दो

दीखै धरा अडोळी अबखी
आभौ निरख्यां नैण भरीजै
भूखा तिरसा मिनख डांगरा
कळपै बिलखै हियौ पसीजै
ढांणी-ढांणी ढीरा लाग्या
उजड़ण लागी भरी गवाड़ी
बेलां बळी बांठका बळग्या
महाकाळ री पड़ी छिंयाड़ी
अंस मूळ सूं जूंझण लाग्यौ
स्रस्टी में मंडियौ घमसांण
रूंख रुखाळां नै यूं बोल्या
काळ पड़ै है थांरै पांण।

माटी रा ठाया रांमतिया
परमेसर पहुमी नै राची
आतमबळ तौ दियौ अणूंतौ
पण काया तौ घड़ दी काची
आप आपरी जूंण बचावण
लूट लड़ाई जबरी माची
मिनख अधूरौ आंधौ होवै
बातां ख्यातां व्हैगी साची
खुद रै लखणां बळै मूंजड़ी
तौ ई नीं छोडै करड़ांण
अंस मूळ सूं जूंझण लाग्यौ
स्रस्टी में मंडियौ घमसांण
रूख रुखाळां नै यूं बोल्या
काळ पड़ै है थांरै पांण।

धरती नै चावै ज्यूं बरतै
गरब करै राखै धणियाप
धीजौ थाक्यौ धरम छूटियौ
ठौड़ कुठौड़ां फूट्यौ पाप
स्वारथ रा हींडा मंडवाया
फेरण लागौ ऊंधौ जाप
पंच तत्त्व रौ परम पूतळौ
कार लोप दी आपौ आप
सत सेवट ई कांण तोड़ दी
आंधौ बोळौ हुयग्यौ जांण
अंस मूळ सूं जूंझण लाग्यौ
स्रस्टी में मंडियौ घमसांण
रूंख रुखाळां नै यूं बोल्या
काळ पड़ै है थांरै पांण।

3 काळ : तीन

भाळ औ कंवळै ऊभौ काळ
बिरंगौ रूप कियां विकराळ
मौत री मोटी जाजम ढाळ
धरा री पसम धरा सूं बागी
कळपण सूं कद कारी लागी
बादळी बरसी नीं बड़भागी।

बोली खेतां बळती साख
धरती जतन जताया लाख
रुखाळा मिनखीचारौ राख
बेली हुयग्यौ कियां बैरागी
कळपण सूं कद कारी लागी
बादळी बरसी नीं बड़भागी।

लूआं निराताळ बळबळती
कांपै धरा साँस कळकळती
नदियां सूखी खळखळती
माटी नै मांनेतां दागी
कळपण सूं कद कारी लागी
बादळी बरसी नीं बड़भागी।

आंधियां आई जेठ असाढ
बतूळौ गिगन रै गळबै चाढ
जमीं रौ पतवांण्यौ पूरौ गाढ
अंबर धरा री प्रीत भागी
कळपण सूं कद कारी लागी
बादळी बरसी नीं बड़भागी।

सांवण हंदी तीज अडोळी
मैंहदी पड़ी बाटकां घोळी
हींडा बिलखै टाबर टोळी
लौ मौत मसांणां जागी
कळपण सूं कद कारी लागी
बादळी बरसी नीं बड़भागी।

चौमासा व्हैता लीला चैर
आज क्यूं धरा गिगन रै बैर
सूखी कांकण सूखा डैर
दयावंत रै दया न जागी
कळपण सूं कद कारी लागी
बादळी बरसी नीं बड़भागी।

स्रोत
  • पोथी : रेवतदान चारण री टाळवी कवितावां ,
  • सिरजक : रेवतदान चारण कल्पित ,
  • संपादक : सोहनदान चारण ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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