जीवण छाई रात अंधारी
पण रोज नीं रैसी
छंटसी-छंटसी दु:ख रा बादळ
सुख रा बाळा बैसी
जीवण छाई रात
राख हियै थोड़ी सी थ्यावस
मौसम बदळैला
पड़्योड़ा चौरावां माथै
वैगा सम्भळैला
दु:ख रो जीवण बणसी कहाणी
चकवो चकवी कैसी
जीवण छाई रात...
माड़ौ मौळौ बखत आवतो
और जावतो रै’वै
बै’ई गाईजै इतिहासां में
हंसता सै दु:ख सै’वै
बखत बां रै ही सागै होसी
जका बखत नै सैसी
जीवण छाई रात...
हिम्मत आळां हाथां आगै
धूजै पहाड़ समन्दर
फूलां री माळा बण जावै
डसणां नाग कळन्दर
बंजड़ भूमि मांय दूध री
घी री नदियां बैसी—
जीवण छाई रात...!