कविता
कोनी होवे
कोरा सबदां रो ब्यौपार
होवे है—
मन रा उद्गार
दरद री धार
हेत री झणकार
फैल्योड़ो सन्सार
दीठ रो विस्तार
आतम रो द्वार
जीवण रो सार
भावां रो खुमार
मिनखां रो ब्यौहार
प्रीत रा त्योहार
गोरी रो सिणगार
घायल री पुकार
दोस्यां ने फटकार
खोटां ने धिक्कार
कपट्यां पे वार
वीरां री हूंकार
सैनिक री ललकार
दलितां री चित्कार
सेवक रो सत्कार
सन्ता रो सार
बाळक री बतवार
नावक री पतवार
डूंगर रो भार
धरती रो प्यार
चांद री चमकार
सूरज री असवार
आभै रो कगार
समंद रो ज्वार
नदी रो कछार
ऊंचा चीनार
फूलां रा हार
ठंडी फुंवार
तीखी कटार
वीणा रा तार
मीठी मार—
कई-कई लिखूं रे यार!
कविता कोनी
सबदां रो ब्यौपार
यो है
चिन्तण रो आधार
सुरसत रो उपकार
ब्रह्म रो औंकार
सृष्टि रो उपहार
जीं रो
आर है न पार...