माटी रै दिवलै सूं कोनी पार पडै
हिवडै मायलो हरक-दीप संजोय रे
धरती रै कण-कण में अखत उजास कर
घणै मान सू प्रेम बीज नै बोय रे
गाव-नगर में पथ-डगर में
खेत-खळा में करै उजास
सत्य-अहिंसा धूप खेय दे
दसू दिसा म भलै सुवास
त्याग तपस्या री निरमळ जळधार सूं
मनडै मायलो काळो कळमस धोय रे
माटी रै दिवलै सू कोनी पार पडै
हिवडै मायलो हीरक-दीप संजोय रे
प्रेम वतन सूं निभा जतन सूं
आखै जग सूं प्रेम निभा
सुख समरिध फळ फूळ पाण नैं
हरी साति री बेल लगा
मोह छोड ससतर पाती अणुबंब रो
मिनख-मिनख न मिनखपणै सू मोय रे
माटी रै दिवलै सू कोनी पार पडै
हिवडै मायलो हीरक-दीप संजोय रे।