आंख्यां में आंसू ढूळै नहीं, विष नै इमरत कर पी जावै
बो मिनख कदैई मरै नहीं मर अमर जिन्दगी जी जावै
नीलकंठ शंकर जूं बणजा, काळकूट सूं डरप मती
तूं थोड़ो सो और मुळक, दो-चार जहर रा गुटका पी
जी म्हारा जिवड़ा जी।
सत री जोत जगायां घट में, थावस सूं इमरत फळ फळसी
अेक किरण फुरतां ही पल में पड़दै रा चितराम बदळसी
सुख-सरवर लहरासी मन में, हुयसी अलख लखी
तूं थोड़ो सो और मुळक दो-चार जहर रा गुटका पी
जी म्हारा जिवड़ा जी।
दुखड़ो रो दळदळ मिटजासी, रूं-रूं री पीड़ा थम जासी
चंद्रकला री अेक किरण सूं सगळा ही दानव खप जासी
सिरजणहार चलावै चरखो, आखर लेख अखी
तूं थोड़ो सो और मुळक दो-चार जहर रा गुटका पी
जी म्हारा जिवड़ा जी।
घड़ी पलक रो दुख दाळद है, दुख दुविधा सूं डरप मती
भोगण भोग भोगणा पड़सी, घटै-बढै नां पाव रती
लेखो लोह लेख लिखियोड़ो, बठै न कोई पखापखी
तूं थोड़ो सो और मुळक दो-चार जहर रा गुटका पी
जी म्हारा जिवड़ा जी।
ऊंतावळ सूं काम बीगड़ै ठौड़-ठीकाणै रह न मती
दुरगत हुवै इसी दुनिया में उळझ पडै रे गत मुगती
आस अमर धन राख गांठ में, धीरज राखी जती सती
तूं थोड़ो सो और मुळक दो-चार जहर रा गुटका पी
जी म्हारा जिवड़ा जी।