म्हैं बेटी बाबल री छोटी

आंखड़ल्यां रो तारो होती

निरमळ गंगा धारा ज्यूं

बगत बायरो अळगी करदी

साथ सहेल्यां सारां सूं।

म्हैं बेटी…।

बाळपणै खेलती गुवाड़ी आळै नीम छांव

साथण सहेल्यां संग गीत घण गावती,

धोरै माथै माटी रा घरूंदा घाल्या नेह चाव

गुड्डा-गुड्डी रमतोड़ी फूली ना समावती।

पोळ मांही चोपड़ रा दांव पेच चालता हा

दादोसा री दीठ सूं म्हैं छुप-छुप जावती,

छोटी-छोटी बात पर रीस कर लेती जद

हरख-निरख म्हारी मायड़ मनावती।

आंख्यां आगै कोरी यादां

लाज-सरम अब मरजादा

खूंटै बंधगी नारां ज्यूं

बगत बायरो अळगी करदी

साथ सहेल्यां सारां सूं।

म्हैं बेटी…।

बाळपणै पूछ लेती, बाबल सूं हर बात

नयण तरैर अब चुप कर देवै है,

आंगणियै धमक-छमक कर डोलती ही

अब जाणै चालती नै सांप सूंघ लेवै है।

सावण हींडोळा अब होयग्या जुगां री बात

आंख्यां रा जंजाळ सारी क्हाणी कैय देवै है,

कूप मांही मैंडक ज्यूं अणजाण दुनियां सूं

अेकली ही बैठी-बैठी चुपचाप स्हेवै है।

ताळ-तळैया रैयग्या अळगा

सुपना जाग्यां पैली बळगा

छैटी घण परिवारां सूं

बगत बायरो अळगी करदी

साथ सहेल्यां सारां सूं।

म्हैं बेटी…।

पीहर परायो कर सासरो सरायो नित

मायड़ रै आंचळ री तज दीन्ही छांव जी,

सात्यूं सुख कुरबान भरतार री खुसी नै

दिन-रैण रटती रही म्हैं थांरो नांव जी।

सासूजी रा ताना सुण्या नणदां रा खारा बोल

हथेळ्यां बैवाई फाटी घस-घस ठांव जी।

आंख्यां आई रात अंधेरी

बेटी रो सगळो जग बैरी

पढै सांझ अखबारां ज्यूं,

बगत बायरो अळगी करदी

साथ सहेल्यां सारां सूं।

म्हैं बेटी…।

स्रोत
  • पोथी : ऊरमा रा अैनांण ,
  • सिरजक : छैलू चारण ‘छैल’ ,
  • संपादक : हरीश बी. शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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