आज पिताजी होता तो,
वे कितरा होता राजी।
पोता-पोती फिर-फिर वांनै,
कहता दाजी-दाजी।
देख-देख कुळ री समरीधी,
घणा हरखता मनड़ै।
पण यो करड़ो काळ कोस ली,
व्यांसूं जीती बाजी।
ओळ्यूं आई आज हो गई,
जूनी यादां ताजी।
गरळगळ्ळ हिवड़ो भर आयो,
गमग्या कठै पिताजी।।