गरण-गरण हालै

नित बिपदा री-घांणी

पण—

अंधार-बिछौवा में

थारै हांचळ री याद!

ज्यूं थोहर रै पाखती महकै रातरांणी!

स्रोत
  • पोथी : पगफेरौ ,
  • सिरजक : मणि मधुकर ,
  • प्रकाशक : अकथ प्रकासण - जयपुर
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