अण धोई

अण न्हाई,

थकी मांदी,

भूखी रेत,

पसर गई है..

चूल्हा चाकी,

फळसां खेतां,

खलिहाणां ताईं।

काळ री,

भूखी भूवा,

डाकण बणगी,

ऊंठां चढ-चढ,

खावण लागी,

खींप खेजड़ा,

फोगां-सिणियां रा,

हरिया टाबर।

ढोल-ढमाकां

फागणिया-घूमर,

गैर डांडिया,

गूंगा बणग्या।

खुल्लै मूंडै,

पड़ग्या बारणा,

ग्वाड़ गळी सब,

अेकम-अेक।

कुत्ता-मिन्नी,

काग-कबूतर,

पांख-पंखेरू,

गांव छोडग्या,

म्हे हेत रेत सूं

राखण ताईं,

उत्तरादै आभै सूं,

नेह रचायो।

रह्यो ताकतो,

घणा दिनाहीं,

नैणां रो पाणी

खोयो।

कुण जाणै थे,

चढ्या चांद पर,

धरती ढोळा,

टप्पा खावो।

हुं ईं धरती रो जायो,

गंगा-जमना रो भाणजो,

पीवण रै पाणीं ताईं,

होठां सूं फेफायो,

मरूं तिसायो।

ईं धूळवी धरती,

सुख तो नहीं,

सुराज रै खांधै–

‘सपनो’ आयो।

स्रोत
  • पोथी : हिवड़ै रो उजास ,
  • सिरजक : कृष्ण बिश्नोई ,
  • संपादक : श्रीलाल नथमल जोशी ,
  • प्रकाशक : शिक्षा विभाग राजस्थान के लिए उषा पब्लिशिंग हाउस, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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