म्हारा कागजांनी
सिराणै धर'र
थारै रोवती बैर की
हिचकी तो
म्हारै बी चाल री छी,
पण यो विधी को
विधान
काळज्या पै
भाटा म्हेल'र
बणायो होवैगो...
जदी तो
फेर दै छै पाणी
सारा सुपणां पै
माथै स्वाण
यो!
बिरह को समंदर
सब कुछ तो
नीं कर पायो
मटियामेट
पण उजाड़ दियो
नेह को घोंसळो...
अर
खांच दी थोड़ी सी
लकीर
म्हारै हेत की
थारै जीव में
जब-जब बी आई
म्हारी याद
हिचकी को बुलावो
म्हारै जीव नै
महसूस कर्यो...
अर
थूं
फेर बी नटै छै
कै मिटार दिया
सारा आखर
जै लिख्या
म्हारा हेत नै
थारा हिरदा पै
काळज्या पै
हाथ धर
बस अेक बार
क्ह देती
कै
मिटार दिया सारा
मंडाण
जै मांड्या
म्हारा जीव नै
थारै मुळकती टैम की!