काज अर् बटण म
गैरो मैळ
दोन्यां री दोस्ती
अटूट कहावे
पण कदै-कदै
काज ने
बटण रो सुभाव
समझ नीं आवे
पूछ्यो बटण सूं—
“यार, जदै म्हारे
मन म सकड़ाई होवे
तो थूं पास कोनी लागे
अर् जदैं म्हूं
उळ्ळाई राखूं
तो थूं निकळ भागे
ईं रो राज कीं है?
बटण पडूत्तर म
बात यूं बतळाई—
“दोस्ती सदा
बरोबर रा
ब्यौहार सूं निभै
जीं म नी सकड़ाई हो
अर् नी ही ज्यादा उळ्ळाई।”