का’ल थांरी आंख्यां सूं

झरतै आँसुआं नै देख’र

जी कर्‌यो

आं नै रोक लूं

म्हारै होठां पर।

स्यात बो

अंवेरणो चांवतो हो

उण अणमोल मोतियाँ नै,

का फेर

इण जमानै रो

कीं असर

उण बी

ले लीन्हो हौ

बो कीं

अळबाधी हूयग्यो हौ

अर इण रै मिस

थांरै

गुलाबी-गुलाबी

उणियारै नै

पंपोळण रो सुख

उठावण नै

ढूकग्यो हौ।

स्रोत
  • पोथी : इक्कीसवीं सदी री राजस्थानी कविता ,
  • सिरजक : महेन्द्र मोदी ,
  • संपादक : मंगत बादल ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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