अतीत री छत सूं

जद टपकण लागै

पीड़ा रा टपका

तो

भोळी भावना रा आंगण में

फैल जावै

चिपचिपी सीलण

अर, रोती आँख्यां री गीज ज्यूं

उभर जावै

बदबूदार पपड़ियां-सी यादां

अठीनै

आपणा अकेलापन ने ओढ’र

खूणा में बैठ्यो

मांग्या भील ज्यूं

थर-थर धूजतो

म्हारो गरीब मन

बगत री खिड़की सूं झांकता

भविस् रा चितराम ने देख’र

ओर्‌यू डरप जावै

उणरी कंपकंपी बंध जावै

भविष्य

वर्तमान री कमर तोड़ण नै

केई-केई स्वांग बतावै

तो

नानी-नाड़ी-सी इच्छावां री

कांई औकात

जो सामै आवै

समय रा बिजूका रे

अर दिखावै-आपणी हिम्मत

एक तो

टापरी टूटी

व्हीपे दरद री खूंटी

खूंणा में डरप्योड़ो मन

निराशा सूं भरी

नानी लाडी-सी इच्छावां ने देख’र

कुण पंथी आस बंधावै

गरीब रा कस्या सपना

अर, कस्यो संसार

किसी होळी, किसी दीवाळी

सगळा दिन एक सार

पण

सपना तो सपना ही है

अणाचूक जावै

अर आस बंधावै

भागता निजरै आवै

एक कोई राज कारीगर

सन्तोष री सीमेन्ट ले

अतीत की छत रा चुंआ ने

संभाळ’र मूंद जावै

तो

पीड़ा रा टपका सूं राहत पावतो

मिनख मन सूं घर सजावै

औसर आया

होळी-दीवाळी-सा त्यौहार मनावै।

स्रोत
  • पोथी : दरद डूँगरा : दरद समँदरा ,
  • सिरजक : नन्दकिशोर चतुर्वेदी ,
  • प्रकाशक : ज्ञान प्रकाशन मंदिर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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