रात!

तेरो अपरोखो उणियारो...

डरावे कोनी,

म्हां सूं मिल जावै तेरो

अणसैंधी हुवणै रो गैरो दुख

पण दिन रै च्यानणै

सैंधा-सैंधा रिस्तां सूं

फंफैड़ीजती म्हैं

उडीकूं तन्नै रात...

आखै दिन।

स्रोत
  • पोथी : अंतस दीठ ,
  • सिरजक : रचना शेखावत ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन,जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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