आयै दिन

मांदगी मांय अधरझूल

झोटा खावै है दादी।

अै झोटा

पूरा समझौ हणै

पण मन नीं भरै दादी रौ!

दादी

थारौ जीवण सूं

क्यूं है इत्तो लगाव?

अबै कांई रह्यौ बाकी

जद कै थारा टाबर

उथपग्या है, नाक राखता-राखता

गळी-गवाड रै डर सूं।

भायला, दादी दांई दुनिया

खावै है झोटा।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : नीरज दइया ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम