आयै दिन
मांदगी मांय अधरझूल
झोटा खावै है – दादी।
अै झोटा
पूरा ई समझौ हणै
पण मन नीं भरै दादी रौ!
दादी
थारौ जीवण सूं
क्यूं है – इत्तो लगाव?
अबै कांई रह्यौ बाकी
जद कै थारा टाबर ई
उथपग्या है, नाक राखता-राखता
गळी-गवाड रै डर सूं।
भायला, दादी दांई दुनिया ई
खावै है झोटा।