इतिहासां में
एक बात
होवै नीं कदैं पुराणी।
जद हँस-हँस
धरती खातर
बळि देवै, देस-जवानी!
काची
कँवळी
सौरभ भीजी
लाड-प्यार सूं पाळी!
संवणै जीवण रै
फौलादी साँचै में ही ढाळी!
कदै न भूळांला म्हे
इसी जवानी री कुरबांणी!
मरै देस-हित
मिटै न वीं री
जुग-जुग तक सैनाणी!