(किशोरी अमोणकर नैं सुणती वेळा)

गैरावती रात

भरै साख—

देही रै बिछोह री।

आभौ सोधै आंख

तिरता बादळ

बिचाळै

अेक दिहाड़ै बिखरै

सुरां री सौरम—

म्हारो प्रणाम

बांके बिहारी।

स्रोत
  • पोथी : दीठ रै पार ,
  • सिरजक : राजेश कुमार व्यास ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
जुड़्योड़ा विसै