नूंवो चूल्हो घात पोत’र

के रांधैली, धरवाळी

ल्या’र उधारो

नीठ-सी कोई

सूण साधैली, घरवाळी

देई-दैव मनाती

बीं कोयै सूं

देसी धोक, भळै

मांगै ली वरदान

रामजी! चूल्हो

अब रोज बळै।

इतणै सै खातर

खूब हाथ बांधैली, घरवाळी

‘मालिक’ रा अैसान

आप पर

सौ लादैली, घरवाळी।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली पत्रिका ,
  • सिरजक : मोहन आलोक ,
  • संपादक : श्याम महर्षि
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