आभै रै आँगणै
छानै मानै
चाँद उग्यायो!
मैं,
चाँद नैं आडैहाथां लियो
अर मिनख होवण रो परचो दियो
बोल्यो:
ओ इकांतरै-पखवाड़ै उगणियां-चाँद!
थारै दिन-दिन घटाबधी रै खेल नै
मैं जाणग्यो
थारो रूप घणां दिन भुळायो
पिसतावूं
क आछो जमारो रुळायो!
थारी
आ बीनणी: रूपाळी च्यानणी
घणी सोवणी’र मनभावण कामणी
बात, आँख्याँ देखी है
पड़सी मानणी!
पण आ है परायी-नार
हड़ ल्यायो तू धरमहार!
बापड़ी रो जोबन पळाका मारतो
तू इणनै रूंध’र
ठंडीं-मादळ कर नाखी!
पूरै पखवाड़ै, तू इणनै नाच नचावै
पूरै पखवाड़ै, या ओळाँतर भाज जावै
मैं जाणग्यो हूं सगळी बात
क कियां होवै-
अंधारी’र च्यानणी-रात!
जिको कैवण सकूं:
तू बेडोळो’र कुरूप
च्यानणी रै पाण थारो है सरूप!
तू ऊबड़खावड़, खाडळखोळ’र अपड़बिहूण
गूंगां!
क्यां पर इतरावै?
तू छळी’र पाखंडी!
अरे घमंडी!
कितराक दिन छाना रैया पोत!
बाकी-ई
कितरा दिन रैसी?
ओ कुरूप!
धोखाधड़ी म्हे जाणग्या!
थारली असली ओळखाण नै
सावळ पिछाणग्या!
चाँद, होळैसी कैयो:
अजेस है म्हारी ओपमा
इबछळ-इकसार!
रूप ओ चाँद-चढ़्यो गिगनार
रूप ओ चन्दरमा-उणियार
अर मैं-ई हूं
काळ-तणी झीणी-गिणतकार!
पितरां रो रैवास
म्हारा रहस्यां रो अन्त-न-पार!