धरती सूं १४५४ हाथ ऊंचो ऊभो हूं म्हैं

सिकागो नगर में सीयर टावर री

११० वीं मजल माथै,

जठै इंतजाम है म्हारै रातवासा रो!

फगत बदळग्यो है अकास

अर म्हारी दीठ में उफांण लेवै

सात समंदर पार म्हारो घर

मकराणा मोहल्ला, जोधपुर में

खीर समद में संपिणी ज्यूं अळेटा खावतो!

[म्हां च्यारूं भायां नै बेचणो है ढूंढो,

लाख लाख रिपिया कोई ओछी रकम कोनी होवै]

अेकाअेक धारण कर लेवै

मानवी उणियारो, म्हारो घर,

चूना सूं पुतियोड़ो, परेवा जैड़ो ऊजळो!

अर बांधतो म्हनैं आपरी हेताळू भुजावां में

अर बंधतो म्हारी अणसीमा बावां में,

डुसका भरतो,

टप-टप चवता आंसुवां में

पाछो लाध्यां गमियोड़ा टावर ज्यूं!

भाईसा! कोरो घर कोनी

म्हारी रातादेई मां है मां!

जिणरी कूंख में जलम लियो म्हैं

अेक अंधारा ओरा री टसकती मचली में,

(सूंठ अर अजवांण री सौरम

हाल भर जावै म्हारी सांस में)

जठे चौक में चित पड़ियो

म्हैं टुग-टुग भाळ्यो असमांन!

नया घर में इण घर रो सामांन!

भूगोल सूं बंधियोड़ी कोनी सभ्यता

मोह, कोनी कोई चीज सूं

अेक बार वापरियां

अकूरड़ी माथै फेंक दे आपरी चीज बस्त

अै कोनी मानै सरग नरक

आतमा परमातमा

अणत काळ अर विपुला प्रिथमी।

स्रोत
  • पोथी : निजराणो ,
  • सिरजक : सत्य प्रकाश जोशी ,
  • संपादक : चेतन स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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