आंधी जिम ऊफणतो हेज

नदियां ज्यूं बैवतो नेह

आंसू आस रो आभौ

हिचकियां जाणै डूंगर

सिसकियां सनेह रो सागर

अर उणमें हबोळा खावती

जुक्रेन री जाई

अेक अभागण

साल ही नीं हुयो ब्याव नैं

हंसी खुसी कटै ही जूंण

गरभ में तीन महीनां रो भ्रुण

स्याळू देस

छोटोसोक नेस

पास में प्रीतम

नीं हो क्यांरो गम

पण सुहायो कोनी सुख

दुःख दायी नेता

जंग नूंतौ देता

विस्तारवादी सोच

मानखै नैं खावणा

अै हाडकां सूं नोच

राजा राणी ज्यूं जीवै हा

पीवै हा सुख रो पाणी

बै चढ गिया राजनीति री भेंट

घर बार छोड पूगा

सरणारथी टैंट

जुक्रेन चावै नाटो सूं नातो

रूस रै छाती में ऊठै घमीड़

हितां रो टकराव

सवा सैर किंया मावै

जद हांडी ही हुवै पाव

अचांणचक छिड़गियो जुद्ध

क्रुद्ध हुयोड़ै रूस

सागैड़ो बरपायो कहर

बिखरण लागी बिल्डिंगां

तूटण लाग्या मकान

हुया करता हा जिका

सहरां री शान

सुरगां जैड़ा सहर

नरक बण गिया

घरबार छूट गिया

टूट पड़िया दुखां रा डूंगर

सरणारथी हुग्या

सुखां रा स्वामी

वा तीन महीनां री गरभवती

कीकर बचावै खुदरो अंश

कीकर काटै गरभ री औस्था

कठै जावै अेकली

उणरो भरतार सैनिक हो

बुलाय लियो बोर्डर माथै

रात्यूं रात

बिछड़ण वेळा मंडिया

हेत रा मेळा

भरभर बाथां धाप’र निरखिया

धणी लुगाई

अेक दूजै नैं

कैई जेज चालियो

भोळावणां रो दौर

भरतार दी भोळावण

होवण आळै टाबर री

अर सिधाय गियो

जूंझण नैं देसहित

बधतो जावै हो जुद्ध

पूग गियो सहरां तांई

कैई सहर हूवै हा खाली

खारकीव सूं खारसौन

न्हाखता निसासो

साधियां मून

छै महीनां हुयगा जुद्ध नैं

सांयती थापण सारू

कुण याद करै बुद्ध नैं

तीन महीनां रो भ्रुण

नौ महीनां रो हुयगो

आंख्यां में नींद

डर रा जागण

सरणारथी कैंप में सूती

गरभवती अभागण

करै ही भूख सूं बांथेड़ो

जापै रो टैम हो नेड़ो

दो जीवां री भूख

पण मिटै नीं अेक री

कुण उणनै उठावै

कुण बैठावै

कुण करै सार संभाळ

सगळा करै हा

खुद नैं जींवतो राखण रा पंपाळ

आधी रात

बीजळी बंद

जिण कैंप में वा सूती

उणरै कनैं हूयो

अचांणचक अेक धमाको

च्यारांकानी हाहाकार

कूकता नर नार

मौत रो नाच

आवाम री जूंण माथै

कैड़ी आई आंच

धमाको सुण’र पड़ गियो

उणरै काळजै मे डबको

अर ऊठण लागी प्रसव री पीड़

अबै कुण करावै जापो

कुण लेजावै अस्पताळ

कुण करै चाकरी

अठै तो सगळा अड़थड़ै हा

बचावण नै खुद रा प्राण

जुद्ध रै बिचाळै

आधी रात रा

प्रसव री पीड़

चौफेर चीत्कार

अर जुद्ध री भेंट चढ़ी

वा कूकती अभागण

जुद्ध री सायत में

जलम दियो

जुक्रेन रै भविस नैं

अर लियो हाथां में

जिको अजै ही जुड़ियो हो

आंवळ सूं

जियां जुड़ियोड़ी है

जुक्रेन री जड़ां

सोवियत संघ सूं

लियां गीगलै नैं हाथां

सुख अर दुःख रै मेळ में

वा करै ही विचार

कै क्यूं होवै है जुद्ध

अर इण जुद्ध सूं

कांई मिलियो उणनैं?

भरतार सूं बिछोह?

अधरात री पीड़?

सगणारथी कैंप?

ढांढै जैड़ो जापो?

भूख सूं बाथेड़ो?

कै खतरां भरियो भविस?

वा क्यूं लेवसी जुद्ध रो पख

वा क्यूं चावैला मिनखां रो भख

उणरो तो नातो है गांधी सूं

अर सांयती थापण आळी

उण हरैक आंधी सूं

उणनै नीं तो नाटो करै निहाल

ना करै रूस

वा क्यूं बढावसी

जुद्ध री हूंस

खुदरो देस नीं आयो काम

जुद्ध रो तो नाम ही हराम

कांई काम रा अै जुद्ध

जुद्ध तो हुया करै

सभ्यता रा दुसमी

प्रदुसण रा प्रेमी

अर मानखै सारू

साख्यात मौत।

स्रोत
  • पोथी : भींत भरोसै री ,
  • सिरजक : सत्येंद्र चारण ,
  • प्रकाशक : वेरा प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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