हे कवि-
बायरा रे बारे में लिखो
पण
बायरा ने
आपणी कविता में भर’र
बायरा रे सागे बेवौ मत
तिनका री भाँत मत उड़ो
सदीव आपणी जमीन सूं जुड़ो
हे कवि-
पाणी रे बारे में लिखो
पण
पाणी ने
दूध में मिला'र बेचणियां रो
पाणी उतारणे में चूको मत
कोई भगीरथ मिल जावे तो
जमीं पे उतरण सूं रुको मत
हे कवि-
चाँद- चाँदणी
सूरज-आकास रे बारे में लिखो
पण
अंधारा अर भूख ने
छाया अर धूप ने नकारो मत
हे कवि-
जद बायरा रे बारे में लिखो
तो कविता में आवणो चाइजै
बड़ा-बड़ा लोगां री हेमात में
चालणे वाली हवा ही बायरो नीं हुवै
बायरो-
मैंणत करता मजदूर से पसीनो सुखावै
सीतलता से अहसास करावे
पण
जद गरम हुवै तो
लू रा थपेड़ा बण जावै
झुंपड़ियाँ ने जलावण वालो बायरो
रेत री प्रचंड आंधी बण'र
हवेलियाँ री नींद उड़ावै
हे कवि-
जद पाणी रे बारे में लिखो
तो कविता में आवणो चाइजै
रेतीली धरती पे आसन जमायो अकाल
'बादली बरसे क्यूं नी ए?’ रो सवाल
सागै-सागै
पाणीदार धरती री आभ अर आबरू
पाणी
पसीनो बण’र बैवे तो
रूखां री हरियाली मन भावे
खेता में फसलां लहरावे
सुरंगो सावण
रंग रंगीलो फागण निजरे आवे
अर
लिछमी रो आगमन हुवै
पण
पाणी ने छाण’र पिवणिया लोग
रगत ने अणछाणियो पी जावै
तो झिलमिल करती रोसणी रा सिरजणहार
पाणी री ताकत ने पिछाणो
भोमका री तिरस बुझावता जल सूं
छल करणियां ने
डूबावण सूं भी मत चूको
हे कवि-
जद चाँद-चाँदणी रे बारे में लिखो
तो कविता में आवणी चाइजै
रामू-चनणा री प्रीत
ढोला-मारू रो गीत
जो पिरेम री रोसणी रो इमरत बरसावै है
डूंगरी दर डूंगरी ने पार करता
केई मामा-भील
गैंती-सब्बल-फावड़ा उठाया
रोटी-रोजी री तलाश में
अेक ठौड सूं दूजी ठौड़ पूग जावै है
म्हनै बिस्वास है-
सूरज-आकास
नुवीं सदी में
नुवीं गरमास रे सागै
नूवों परकास फैलावैगा
पंखेरू-अनन्त आकास नापता
सांय से अहसास करावैगा
शान्ति रो सन्देश सुणावैगा
हे कवि-
बायरा, पाणी अर आकास रो
दायरो
जरूर जरूर बधणो चाइजै
कवि, कलम अर कविता में
करम, धरम, अर मरम रो
निसाण
जरूर जरूर सधणो चाइजै।