सोनल धोरिया

बां'व पसार’र बुलावै...

पलकां नीं झपूं

देखती जावूं

बाळू पर मंडती

लहरां मन रै मांय हवळै-हवळै

हबोळा खावण लागै!

बनराय रै साथै कीं बंतळ करूं

कै जावै गांव अपरोखो-सो

जी तड़फै पग पाछा बावड़ै

बनराय मांय नीं जाइजे भाज’र...

म्हैं देखूं तिरसणा सूं

बठीनै जांवता भगवां भेस वाळां नै

अर मुड़ जावूं

गांव रै गेलै कानीं।

स्रोत
  • पोथी : अंतस दीठ ,
  • सिरजक : रचना शेखावत ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन,जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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